Sridhara Pathaka Tatha Hindi Ka Purva Svacchandatavadikavyi |
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अंग्रेजी अधिक अन्य अपनी अपने अब आदि इन इस प्रकार इससे इसी ई० में उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उपर्युक्त उस उसका उसकी उसके उसे एक एवं और कर करता करते करने कवि कविता कवियों का काल काव्य की काव्य में किन्तु किया किया है कुछ के कारण के लिए के लिये के सम्बन्ध में के साथ केवल को क्षेत्र में खड़ी बोली गई छन्द जब जी की जी के जीवन जो तक तथा तो था थी थीं थे दिया देश दोनों द्वारा द्विवेदी युग नवीन नहीं नाम ने पं० पर पाठक जी ने पूर्ण प्रकार के प्रकृति प्रस्तुत प्रेम भारत भारतीय भारतेन्दु भारतेन्दु-युग भावना भाषा में भी मैं मैथिलीशरण गुप्त यह रचना रहा रही रहे रामनरेश त्रिपाठी रूप वह विषय वे श्री श्रीधर पाठक संस्कृत सब सभी समय समाज साहित्य से स्थान स्वरूप हिन्दी हिन्दी साहित्य ही हुआ हुई हुए हृदय है कि हैं होकर होने